अखंड भारत
सिंहनाद सा हुआ कहीं
भयभीत सा हुआ कोई
ध्येय में, हिन्द का
विस्तार सा हुआ कोई
जन-जन है रत हुआ
कर्म-व्याकुल हुआ
राष्ट्र शक्ति-माल्य का
रत्नों सृजन हुआ
राष्ट्र जोश से बढ़ा
सुभाष सा कोई खड़ा
लौह-नेतृत्व में,
वीर ओज से भरा
पोत डोलने लगे
“तेजस” खौलने लगे
कलाम “बैलेस्टिक” कंपी,
विस्तार-उन्मत्त से लगे
बाजू फड़क उठे
मातृ दिल धड़क उठे
धरा- ऋण मुक्ति को
वीर पग भड़क उठे
“नापाक” धरती हिल सके
हिन्दोसतां में मिल सके
देश व्याकुल हो रहा
अखंड भारत के लिए |
सोमनाथ डनायक; अगस्त 2016
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